विज्ञान कथाकार ज़ाकिर अली 'रजनीश' की विज्ञान कथाओं का सार-संक्षेप
विज्ञान कथा 'एक कहानी'
विज्ञान कथा 'निर्णय'
'निर्णय' विज्ञान कथाकार ज़ाकिर अली 'रजनीश' की चर्चित कहानी है। कहानी की नायिका जरीना एक मध्यवर्गीय मुस्लिम परिवार की लड़की है। उसके परिवार में छ: अन्य बहने हैं, जो लड़के की उम्मीद में धरती पर अवतरित हुई थीं। संयोग से जरीना की बहनों की जब शादी होती है, तो उनके घर में भी लड़कियों का जन्म होता है। इससे उन्हें बुरी तरह से प्रताड़ित किया जाता है। यह देखकर जरीना तड़प उठती है और एक ऐसी वैक्सीन का निर्माण करती है, जिसके इस्तेमाल से पुरूषों के वाई क्रोमोसोम को मजबूत बनाकर लड़के की इच्छा-पूर्ति की जा सके। जरीना की इस खोज की सूचना एक उद्योगपति को मिलती है और वह इस वैक्सीन के बदले में उसे लाखों रूपये का आफर देता है। लेकिन अंतिम समय में जरीना उस कॉन्ट्रैक्ट को फाड़ देती है और चंद नोटों के लिए समाज का ताना-बाना छिन्न-भिन्न करने से इनकार कर देती है। यह कहानी 'इंडिया टुडे' के 30 नवम्बर, 1995 के अंक में प्रकाशित हो चुकी है। विज्ञान कथा 'निर्णय' को आप यहां पर भी पढ़ सकते हैं।
विज्ञान कथा 'ज़रूरत'
'ज़रूरत' जाकिर अली 'रजनीश' की प्रारम्भिक विज्ञान कथा है, जिसमें समययान को आधार बनाकर पर्यावरण की चिंताओं को सशक्त ढ़ंग से उकेरा गया है। कहानी के नायक प्रोफेसर यासीन अपने सहायक विजय के साथ समययान से 25वीं सदी की यात्रा पर जाते हैं। लेकिन उस समय की उजाड़ और वीरान धरती को देखकर वे हतप्रभ रह जाते हैं। उस सदी के लोग धरती के भीतर चूहों की तरह घर बनाकर रहते हैं। वहां पर प्रोफेसर यासीन और उनके सहयोगी को धरती के विनाश का जिम्मेदार मानते हुए उनपर मुकदमा चलाया जाता है और उन्हें मृत्युदण्ड की सजा सुनाई जाती है। यह सुनकर प्रोफेसर यासीन की आंख खुल जाती है। उस समय वे स्वयं को अपनी प्रयोगशाला में पाते हैं। तभी उनका सहायक विजय समययान का परीक्षण सफल होने की सूचना देता है। इसपर प्रोफेसर यासीन कोई उत्साह नहीं दिखाते और समययान से जरूरी अपने समय के पर्यावरण को बताते हैं और उसकी रक्षा का प्रण लिए प्रयोगशाला से बाहर निकल जाते हैं। यह कहानी 'विज्ञान प्रगति' के मार्च, 1995 के अंक में प्रकाशित हो चुकी है। विज्ञान कथा 'ज़रूरत' को आप यहां पर भी पढ़ सकते हैं।
विज्ञान कथा 'चश्मदीद गवाह'
विज्ञान कथा 'चश्मदीद गवाह' में ज़ाकिर अली 'रजनीश' ने इस पॉलीग्राफ यंत्र के द्वारा हत्या के राज को फाश करने के घटनाक्रम को कहानी का आधार बनाया है। कहानी के नायक डॉ. सुधाकर के मित्र प्रोफेसर सूर्य प्रकाश एक वनस्पति वैज्ञानिक हैं, जो पौधों के प्रतिरक्षा तंत्र को लेकर महत्वपूर्ण खोज करते हैं। उनका नौकर किशोरी पैसों के लालच में उन पेपर का सौदा कर लेता है। लेकिन जब वह उनकी फाइल ले जा रहा होता है, तो उसी समय प्रोफेसर सूर्य प्रकाश वहां आ जाते हैं। बचने का कोई अन्य रास्ता न देखकर किशोरी उनकी हत्या कर देता है। डॉ. सुधाकर को जब यह पता चलता है, तो वे पॉलीग्राफ यंत्र और घटना स्थल पर मौजूद मनीप्लांट के पौधे के सहयोग से हत्यारे का राज खोलने में कामयाब हो जाते हैं। यह कहानी 'विज्ञान प्रगति' के जुलाई, 1997 के अंक में प्रकाशित हो चुकी है।
विज्ञान कथा 'और वह जी उठा'
विज्ञान कथा 'और वह जी उठा' में जाकिर अली 'रजनीश' ने `हिमीकरण द्वारा पुनरूज्जीवन´ की कल्पना को आधार बनाया है। कहानी के नायक डा0 वजाहत के सामने एक सैनिक का शव लाया जाता है, जिसकी कुछ देर पहले बर्फ में दब कर मृत्यु हो चुकी है। उस व्यक्ति के सीने में आतंकवाद से सम्बंधित एक महत्वपूर्ण राज दफ्न है, इसलिए कैप्टन उसे बचाने के लिए डॉक्टर पर विशेष दबाव डालते हैं। डॉ. वजाहत उस जवान पर `हिमीकरण द्वारा पुनरूज्जीवन´ परिकल्पना को आजमाने का निश्चय करते हैं। एक लम्बी और उबाऊ प्रक्रिया के बाद डॉ. वजाहत की मेहनत रंग लाती है और कुछ समय के बाद उस जवान की सांसें फिर से चलने लगती हैं। यह कहानी 'राजभाषा प्रत्रिका' सी.डी.आर.आई. के 1967 के अंक में प्रकाशित हो चुकी है।
विज्ञान कथा 'विस्फोट'
विज्ञान कथा 'विस्फोट' में जाकिर अली 'रजनीश' ने अदृश्य होने की परिकल्पना को आधार बनाया है। कहानी का नायक शाहिद अंतकवाद का शिकार एक जवान है। वह आतंकवादियों के गढ़ का खात्मा करने के लिए एक ऐसे पदार्थ का निर्माण करता है, जिसे लगाने के बाद व्यक्ति का शरीर अदृश्य हो जाता है। बाद में पता चलता है कि वह पदार्थ अत्यंत विषैला होता है और शरीर पर उसका लेप करने से जान जाने का भी खतरा है। लेकिन अपनी जान की परवाह न करते हुए शाहिद अपने शरीर पर उसका लेप लगाकर आतंकवादियों के गढ़ में जाता है और उन्हें टाइम बम से नष्ट कर देता है। घायल अवस्था में शाहिद को भारतीय सेना द्वारा अस्पताल में ले जाया जाता है और उससे इससे सम्बंधित पूछताछ की जाती है। लेकिन शाहिद बिना कुछ बताए इस दुनिया से विदा हो जाता है। और इस प्रकार उस अदृश्य करने वाले पदार्थ का रहस्य, रहस्य ही रह जाता है। यह कहानी 'विज्ञान प्रगति' के मई, 1995 के अंक में प्रकाशित हो चुकी है। विज्ञान कथा 'विस्फोट' को आप यहां पर भी पढ़ सकते हैं।
विज्ञान कथा 'चुनौती'
विज्ञान कथा 'कयामत आने वाली है' के नायक प्रोफेसर मुबारक हैं। वे एक ऐसे जींस की खोज करने में कामयाब हो जाते हैं, जो शरीर में मौजूद कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए जिम्मेदार होता है। वे उसे हटाने के बाद देखते हैं कि चूहों की उम्र दोगुनी हो गयी है। प्रोफेसर इस प्रयोग को मनुष्यों पर दोहराना चाहते हैं। लेकिन उनके इस काम को ईश्वर के काम में अडंगा मानकर कुछ लोग उनपर हमला कर देते हैं, जिसमें उनकी मृत्यु हो जाती है। उनकी बेटी जोहरा अपनी सुरक्षा की परवाह न करते हुए अपने भाई के पास अमेरिका जाने से इनकार कर देती है और अपने पिता की खोज को अंजाम तक पहुंचाने के लिए समर्पित हो जाती है। यह कहानी 'स्वतंत्र भारत' के 7 अगस्त, 1997 के रविवारीय परिशिष्ट में प्रकाशित हो चुकी है।
विज्ञान कथा 'कयामत आने वाली है'
विज्ञान कथा 'कयामत आने वाली है' के नायक प्रोफेसर शाह हैं। उन्हें एक दिन ऐसी उड़नतश्तरी के बारे में पता चलता है, जो धरती से कार्बन डाई आक्साइड चुरा कर अपने ग्रह पर ले जाती है। शाह जब अपने यंत्रों के द्वारा उस उड़नतश्तरी का पीछा करते हैं तो उन्हें पता चलता है कि ब्रह्मांण में स्थित एक ग्रह के लोग सांस के रूप में कार्बन डाई आक्साइड को लेते हैं। चूंकि उनके ग्रह पर कार्बन डाई आक्साइड के सोर्स समाप्त हो चुके हैं, इसलिए वे धरती से उसे चुराने का काम करते हैं। साथ ही वे धरती पर आक्रमण करके यहां के लोगों को गुलाम भी बनाना चाहते हैं। तभी प्रोफेसर शाह का जासूसी उपकरण पकड़ा जाता है और नष्ट कर दिया जाता है। यह देखकर प्रोफेसर हताश हो जाते हैं और अपने आप को पर्यावरण की चिंताओं से घिरा हुआ पाते हैं। यह कहानी 'स्वतंत्र भारत' के 1 दिसम्बर, 1996 के रविवारीय परिशिष्ट में प्रकाशित हो चुकी है।
विज्ञान कथा 'उड़ने वाला आदमी'
विज्ञान कथा 'उड़ने वाला आदमी' का पात्र विजय आसमान में पक्षियों की तरह उड़ना चाहता है। इसपर उसका दोस्त अजीज उसका मजाक उड़ाता है। यह सुन कर विजय उससे वादा करता है कि एक न एक दिन वह उड़ कर अवश्य दिखाएगा। और जब तक ऐसा नहीं कर पाएगा, तुम्हारे सामने नहीं आएगा। फिर एक दिन घटनाक्रम ऐसा बीतता है कि विजय सचमुच गुरुत्वाकर्षण को मात देकर उड़ने का तरीका इजाद कर लेता है। लेकिन जब तक अजीज उसके पास पहुंचता है, दुर्घटनावश उसका प्राणान्त हो चुका होता है। और इस तरह उसका आसमान में उड़ने का तरीका रहस्य बनकर ही रह जाता है। यह कहानी 'स्वतंत्र भारत' के 11 जनवरी, 1999 के रविवारीय परिशिष्ट में प्रकाशित हो चुकी है।
विज्ञान कथा 'परिपथ'
विज्ञान कथा 'परिपथ' में जाकिर अली 'रजनीश' ने एक खोजबीन प्रवृत्ति के बच्चे के सपनों को उकेरा है। कहानी का नायक आफाक एक ऐसा मोटर बनाना चाहता है, जो उससे जुड़ी बैटरी से ही चल सके। यह बैटरी मोटर को चलाने के साथ उसे चार्ज करने वाले चार्जर को भी ऊर्जा प्रदान कर सके। इस तरह बिना किसी अतिरिक्त ऊर्जा के मोटर अपना काम कर सके। आफाक के अब्बू उसकी इन कारगुजारियों से बेहद खफा होते हैं, लेकिन जब उनके पड़ोसी सहाय जी आफाक के प्रोजेक्ट के महत्व को बताते हैं, तो उनके विचार बदल जाते हैं और वे आफाक को हर सम्भव सहायता के लिए प्रस्तुत हो जाते हैं। यह कहानी 'सेवन हिल्स' के अक्टूबर, 1995 के अंक में प्रकाशित हो चुकी है।
विज्ञान कथा 'परछाई'
विज्ञान कथा 'परछाई' का नायक शादाब एक होनहार डॉक्टर है। वह अपनी पत्नी नूर से उसका क्लोन बनाने का वादा करता है। शादाब की अथक मेहनत के बाद उसका सपना साकार हो जाता है। लेकिन क्लोन के दोगुनी गति से होने वाले विकास को देखकर नूर डर जाती है और उसे नष्ट करने को कहती है। शादाब इससे मना कर देता है। संयोग से कुछ समय के बाद नूर का एक्सीडेंट हो जाता है। उसके बचने की कोई उम्मीद न देखकर शादाब उसके गर्भाशय में पल रहे भ्रूण को नूर के क्लोन 'नूरी' में प्रतिस्थापित कर देता है और उसे अपनी पत्नी के रूप में घर में ले आता है। नूरी बच्चे को जन्म देती है। लेकिन उसके मस्तिष्क की लिम्बिक काशिकाएं विकृत हो जाने के कारण वह असामान्य हो जाती है और स्वयं जनित दुर्घटना में जान गंवा देती है। यह देखकर डॉक्टर शादाब को एहसास होता है कि नूर का क्लोन सिर्फ उसकी एक परछाई थी। और परछाई भला कब तक उसका साथ निभाती। यह कहानी 'इलेक्ट्रानिकी आपके लिए' में प्रकाशित हो चुकी है।
विज्ञान कथा 'बाय बाय प्रिंसेस'
विज्ञान कथा 'बाय बाय प्रिंसेस' धरती से दस प्रकाश वर्ष दूर स्थित 'जेमान' बेह्माण्ड के 'प्लेनेटेरा' ग्रह की प्रिंसेस 'जेनेसीका' की कहानी है, जोकि एक साईबोर्ग है। जेनेसीका एक सुरक्षित ग्रह की तलाश में धरती पर आती है। लेकिन यहां पर कुछ ऐसा देखती है, जिससे उसके जीवन का उद्देश्य बदल जाता है। वह लड़कियों की सुरक्षा के लिए स्वयं को समर्पित कर देती है। बीस वर्षों के बाद इतिहास फिर से अपने आप को दोहराता है और उसी लड़की दामिनी के साथ वही दरिंदा फिर से वही हैवानियत भरा काम करने का प्रयत्न करता है। लेकिन दामिनी उस वहशी को मरणासन्न स्थिति में पहुंचा देती है। दामिनी पर 'अटेम्प्ट टू मर्डर' का केस चलता है। जेनेसीका को सबके सामने आना पड़ता है। वह जज के सामने सारी सच्चाई बयान करती है। पर अपने ग्रह के नियमों से बंधे होने के कारण उसे धरती छोड़ कर जाना पड़ता है। विज्ञान कथा 'बाय बाय प्रिंसेस' लोकप्रिय विज्ञान पत्रिका 'विज्ञान प्रगति' के सितम्बर, 2024 के अंक में प्रकाशित हो चुकी है। इस कहानी को आप यहां पर भी पढ़ सकते हैं।
‘समय के पार’ एक वैज्ञानिक बाल उपन्यास है, जिसमें पर्यावरण की समस्या को रोचक ढ़ंग से प्रस्तुत किया गया है। कहानी के मुख्य पात्र प्रोफेसर हसन हैं, जो स्वयं द्वारा आविष्कृत समययान के द्वारा अपने मुंहबोले भतीजे प्रकाश के साथ 25वीं सदी की यात्रा पर जाते हैं। लेकिन उस समय की उजाड़ और वीरान धरती को देखकर वे हतप्रभ रह जाते हैं। उस सदी के लोग धरती के भीतर चूहों की तरह घर बनाकर रहते हैं। प्रोफेसर हसन और प्रकाश को धरती के विनाश का जिम्मेदार मानते हुए उनपर मुकदमा चलाया जाता है और उन्हें मृत्युदण्ड की सजा सुनाई जाती है। पर वहां के व्यवस्थापक की पुत्री खुश्बू, जोकि प्रकाश की दोस्त बन जाती है, इन लोगों को माफ करने का निवेदन करती है। जिससे ये लोग वापस अपने समय में जाकर धरती की भावी दुर्दशा का बयान करें और लोगों को पर्यावरण रक्षा के लिए प्रेरित कर सकें। जज महोदय खुश्बू से इस विचार से सहमत हो जाते हैं और प्रोफेसर हसन तथा प्रकाश को माफ कर देते हैं। इस तरह प्रोफेसर हसन और प्रकाश की जान बचती है और वे धरती को बचाने का वादा करके वापस अपने 'समय' की ओर लौट पड़ते हैं।
‘समय के पार’ एक रोचक साइंस फैंटेसी है, जो बालसाहित्य जगत में चर्चित रही है। यह पुस्तक आठ विज्ञान कथाओं के साथ संयुक्त रूप से प्रकाशन विभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वर्ष 2000 में प्रकाशित हुई थी। यह हिन्दी साहित्य जगत की इकलौती पुस्तक है, जिसे बाल साहित्य के तीन सबसे बड़े पुरस्कारों (भारतेन्दु पुरस्कार, रतनशर्मा स्मृति बालसाहित्य पुरस्कार, और उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के सर्जना पुरस्कार) से पुरस्कृत हो चुकी है।
'ह्यूमन ट्रांसमिशन' एक लघु वैज्ञानिक बाल उपन्यास है। यह उपन्यास 'ह्यूमन ट्रांसमिशन एवं अन्य विज्ञान कथाएं' पुस्तक में 9 विज्ञान कथाओं के साथ संग्रहीत है। यह पुस्तक आईसेक्ट पब्लिकेशन, भोपाल से वर्ष 2017 में प्रकाशित हुई है।
प्रोफेसर रामिश अपने यंत्र का परीक्षण स्वयं पर करने का निर्णय लेते हैं। वे अपनी लैब नं0 एक से स्वयं को विद्युत चुम्बकीय तरंगों में बदलकर लैब नं0 दो तक की यात्रा करने की तैयारी करते हैं। प्रयोग प्रारम्भ होने के कुछ पल बाद ही लैब नं0 दो की लाइट चली जाती है। संयोग से तभी वहां पर एक टीवी चैनल की ओबी वैन आ जाती है और बात ही बात में उसके पत्रकार को प्रोफेसर रामिश के अनूठे प्रयोग की जानकारी मिल जाती है। टीवी चैनल का पत्रकार अपनी वैन के जेनरेटर से प्रोफेसर रामिश की प्रयोगशाला को इलेक्ट्रिक सप्लाई देता है। तभी लाइट आ जाती है और शॉर्ट शर्किट के कारण प्रयोगशाला की मशीन में आग लग जाती है। यह देखकर सभी लोग बेहद दुखी हो जाते हैं।
प्रोफेसर रामिश तीस मिनट से ज्यादा समय तक तरंगों के रूप में ट्रांसमिशन मशीन में कैद रहते हैं, जिससे उनकी विचारधारा परिवर्तित हो जाती है। वे जैसे-तैसे मशीन से बाहर निकलने में कामयाब होते हैं। प्रोफेसर अपने बचपन के दिनों को याद करते हैं जब वे नाले के किनारे बनी झुग्गी में नारकीय जीवन जीने को अभिशप्त थे। प्रोफेसर स्वयं को धिक्कारते हैं कि वे स्वयं तो उस नरक से निकल कर वैज्ञानिक बन गये, पर वहां के रहने वाले शेष लोगों को पूरी तरह से भूल गये। अंततोगत्वा वे अधजली ट्रांसमिशन मशीन को पीछे छोड़ कर अपनी पुरानी दुनिया को संवारने का निश्चय करते हैं। प्रोफेसर के इस प्रोजेक्ट को कामयाब बनाने के लिए महक ही नहीं उसका पूरा परिवार साथ देने का निश्चय करता है और उनके साथ चल पड़ता है।